रेल कर्मचारी और उनके घरवाले अब गंभीर बीमारी होने पर मनमाफिक निजी अस्पतालों की जगह रेलवे प्रशासन के अनुबंध वाले निजी अस्पतालों में ही इलाज करा सकेंगे। पहले रेलवे प्रशासन अनुबंध वाले अस्पतालों में भी सुविधा देने की पक्षधर नहीं थी, लेकिन कर्मचारी संगठनों के विरोध पर छूट दी गई है। रेलवे बोर्ड ने देश भर के अस्पतालों में खर्च की समीक्षा के बाद इस संबंध में आदेश भी जारी कर दिया है।  

अमर उजाला ने 14 नवंबर को रेलवे बोर्ड की तैयारियों को प्रमुखता से प्रकाशित किया था। पश्चिम रेलवे में इसकी शुरूआत कर दी गई है। रेलवे बोर्ड के निर्देश पर खर्चों में कटौती के लिए दो नवंबर को भारतीय रेलवे स्तर के चिकित्सा निदेशकों की बैठक हुई थी। जिसमें निजी अस्पतालों की जगह सरकारी और प्रधानमंत्री आयुष्मान योजना से जुड़े निजी अस्पतालों में कर्मचारियों और उनके परिजनों का इलाज कराने के लिए जोर दिया था।


इसे लेकर रेलवे यूनियन ने विरोध शुरू कर दिया था। जिसके बाद रेलकर्मियों को अनुबंध वाले अस्पतालों में इलाज की सहूलियत दे दी गई है। रेलवे बोर्ड के कार्यकारी निदेशक, स्वास्थ्य डॉ. के श्रीधर ने 23 नवंबर को इस संबंध में आदेश भी जारी कर दिया है।
एआईआरएफ ने बनाया दबाव
एआईआरएफ
के महामंत्री क. शिव गोपाल मिश्र ने रेलवे बोर्ड के चेयरमैन के सामने मुद्दा उठाकर अनुबंध वाले निजी अस्पतालों में इलाज की सुविधा का दबाव बनाया था। ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन ने मामले को रेलवे बोर्ड के सामने उठाकर रेलवे कर्मचारियों को सेहत सम्बन्धित लाभ पहुँचाने का काम किया है। कर्मचारियों ने रेलकर्मियों की सुविधा के लिए अनुबंध वाले अस्पतालों में इलाज की सुविधा बरकरार रखने के लिए आभार जताया है।  


 15 अस्पतालों से है अनुबंध
पूर्वोत्तर रेलवे में 15 निजी अस्पतालों से अनुबंध है जहां गंभीर बीमारी होने पर रेलकर्मियों को इलाज के लिए भेजा जाता है। इन अस्पतालों में कैशलेस इलाज की सुविधा है। जो भी खर्च होता है उसका भुगतान बाद में रेलवे प्रशासन करता है।