वन्दे भारत ट्रेन को 15 फरवरी 2018 को दिल्ली से वाराणसी तक चलाया गया. वन्दे भारत ट्रेन इस समय 10 रूटों पर चल रही है.

आईये जानते हैं कि वन्दे भारत ट्रेन को किस तरह से आने वाले सालों में चलाया जायेगा.

अगले आठ वर्षों में यात्री ट्रेनों का चेहरा और चाल बदलने में जुटा रेलवे स्वदेशी तकनीक से निर्मित वंदे भारत के अब तीसरे संस्करण की तैयारी कर रहा है। पहले और दूसरे संस्करण की तुलना में इसे अत्यधिक सुविधाजनक और गति बढ़ाने के लिए कई फीचर बदले जा रहे हैं। सबसे ज्यादा फोकस रफ्तार बढ़ाने पर है।

अभी वंदे भारत की 130 से 160 किमी प्रति घंटे की गति है, जिसे प्रति घंटा 200 किमी के पार पहुंचाना है। अभी तीसरे संस्करण के डिजाइन पर काम चल रहा है। वंदे भारत के पहले संस्करण में बनाई जा रही सभी 75 ट्रेनें बैठकर यात्रा करने वाली हैं। दूसरे संस्करण में सभी चार सौ ट्रेनों के डिजाइन को अपडेट करते हुए स्लीपर बनाई जा रही हैं। तीसरे संस्करण की ट्रेनें भी स्लीपर ही होंगी, लेकिन इसमें तीन वर्ग एसी-वन, एसी-टू और एसी-थ्री होंगे।

तीसरे संस्करण की ट्रेनों की हल्की होगी बोगियां

तीसरे संस्करण की ट्रेनों की बोगियों को पहले एवं दूसरे संस्करण की तुलना में ज्यादा हल्का बनाया जा रहा है। बोगियों को हल्का करने के लिए एल्युमिनियम का इस्तेमाल किया जाएगा। इससे बिजली की कम खपत होगी। संचालन लागत में भी कमी आएगी। यात्रियों के लिए सुविधाएं भी बढ़ाई जा रही हैं। नए संस्करण की ट्रेनों के अगले भाग को इस तरह से डिजाइन किया जा रहा है कि पटरियों पर पशुओं के टकराने की घटनाओं में भी कमी आएगी।

2017 में शुरू हुई थी ट्रेनों के कायाकल्प की तैयारी

भविष्य में वंदे भारत की गति को देखते हुए रेल पटरियों एवं स्टेशनों को भी उसी के हिसाब से विकसित किया जा रहा है। ट्रेनों के कायाकल्प की तैयारी 2017 में शुरू हो गई थी। यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री के निर्देश के बाद मात्र डेढ़ वर्ष के भीतर ही स्वदेशी तकनीक से निर्मित वंदे भारत की पहली ट्रेन पटरियों पर दौड़ने लगी थी।

इसके पहले रेलवे के आधुनिकीकरण की बात आती थी तो दूसरे देशों से नई तकनीक का आयात कर लिया जाता था, लेकिन वंदे भारत की सफलता ने सत्यापित कर दिया है कि अब ऐसा नहीं होगा। भारत अपनी तकनीक से विश्वस्तरीय ट्रेनें बना सकता है और अपनी जरूरतें पूरी होने के बाद निर्यात भी कर सकता है।

दूसरे वर्जन की सौ ट्रेनों का टेंडर जारी

वंदे भारत की बोगियों को एल्युमिनियम से बनाया जा रहा है, ताकि हल्की होने के चलते ट्रेन की गति बढ़ाई जा सके। दूसरे संस्करण की सौ ट्रेनों को एल्युमिनियम से बनाने निविदा जारी कर दी गई है। इसके लिए दो कंपनी हैदराबाद की मेधा सर्वो और स्विट्जरलैंड की स्टेडलर की संयुक्त भागीदारी के साथ फ्रांसीसी कंपनी एल्स्टाम ने बोली लगाई है।


निविदा 30 हजार करोड़ रुपये की है। 100 ट्रेन को बनाने का खर्च 13 हजार करोड़ रुपये आएगा, किंतु कंपनियों को अगले 35 वर्ष तक देखरेख भी करनी है। यह राशि उन्हें 35 वर्ष बाद दी जाएगी। सभी सौ ट्रेनें सोनीपत में बनाई जाएंगी।