रेल विभाग में काम करने वाले निचले स्तर के कर्मचारियों को आवंटित सरकारी आवास खंडहर में तब्दील हो चुके हैं। कई दशक पहले बनाई गई रेलवे कॉलोनियों में मकानों की हालत इतनी खराब हो गई है कि यहां रहना मुश्किल हो रहा है, कहीं दरवाजे टूट गए हैं, तो कहीं खिड़कियां सड़ चुकी हैं। दीवारों में सीलन है तो कहीं पाइप लाइन लीकेज होने से गंदा पानी पीने को मिल रहा है। तनाव और थकावट भरी ड्यूटी करने के बाद घर लौटने पर भी रेलकर्मी और उनका परिवार जर्जर मकानों के कारण सुकून से नहीं रह पाता।

दोयम दर्जे का व्यवहार झेल रहे रेलकर्मीः

दबी जुबान में कर्मचारी कहते हैं कि रेलवे के आला-अफसरों को आवंटित बंगले उसी दौर में बने हैं, लेकिन हर साल इनकी रंगाई-पुताई और मरम्मत की जाती है, लेकिन हम लोगों की शिकायत के बावजूद सुनवाई नहीं हो रही है। बाजार में मकानों का किराया इतना ज्यादा है कि मजबूरी में सस्ते रेल आवासों में रहना पड़ता है। कार्यस्थल पास होने के कारण भी रेलकर्मियों को ड्यूटी में आसानी होती है। अफसर एक फोन करते हैं तो उनके टूटे नल से लेकर फर्श में टाइल्स तक लग जाते हैं, लेकिन हमारी बारी आती है तो बजट का रोना रहता है। जितना पैसा मरम्मत पर खर्च होता है, इतने में तो नई रेलवे कॉलोनी तैयार हो जाती, लेकिन मरम्मत के नाम पर ही कई अफसर चांदी काटते हैं।

नए कर्मचारियों को आवास नहीं:

खंडहर होने के कारण आइओडब्लयू विभाग ने बारह बंगला, अठारह बंगला, न्यूयार्ड एवं पोटरखोली में सैकड़ों जर्जर मकान तोड़ दिए हैं। कर्मचारियों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन नए आवास नहीं बनने से अलग-अलग विभागों में सैकड़ों रेलकर्मियों को मकान देने की प्रतीक्षा सूची चल रही है। पुरानी कॉलोनियों में नए मल्टीस्टोरी आवास बनाने की योजना थी, लेकिन इसे भी रेलवे ने मंजूरी नहीं दी। दर्जनों रेल आवासों में पुलिसकर्मियों और असामाजिक तत्वों का कब्जा है, मकान खाली कराने को लेकर रेलवे ने पुलिस अधिकारियों से पत्राचार भी किया था।

छोटे पड़ते हैं कमरेः

कर्मचारियों ने बताया कि पुराने दौर में बने रेल आवासों में कमरे, किचन और बरामदा बहुत संकरा है। रेलकर्मी का संयुक्त परिवार यहां सहूलियत से नहीं रह सकता, किसी तरह रेलकर्मी गुजारा कर रहे हैं। बारिश में छत टपकती है, तो दीवारों में सीलन बनी रहती है। टॉयलेट के दरवाजे टूट गए हैं। पीछे सीवेज लाइन से होकर पानी के पाइप आए हुए हैं, लाइन लीकेज होती है तो कॉलोनियों में गंदा पानी मिलता है। गर्मियों में प्रेशर कम होने से पानी का हाहाकार मच जाता है।

60 मकानों की सूची दीः दो दिन पहले वेस्ट सेंट्रल रेलवे मजदूर संघ टीआरडी अध्यक्ष जगदीश जुनानिया, सचिव कुंदन आगलावे, सहसचिव हेमराज सिसौदिया ने वरिष्ठ मंडल अभियंता मतीन खान को ज्ञापन सौंपकर जर्जर रेल आवासों में नए दरवाजे, शौचालय चोक होने की समस्या बताते हुए करीब 60 आवासों की सूची दी है, जिसमें प्राथमिकता से मरम्मत की जरूरत है, हर बार की तरह आश्वासन मिला है। मरम्मत के नाम पर ही विभाग लाखों रुपये खर्च करता है, लेकिन नए रेल आवास बनाने की कोई योजना नहीं है। कई दशक पुराने आवास जर्जर हो चुके हैं। पानी की कमी, टूटे दरवाजे, छत लीकेज जैसी कई समस्याओं से रेलकर्मी तकलीफ उठा रहे हैं। हमने जर्जर आवासों में तत्काल मरम्मत के लिए ज्ञापन दिया है, यदि सुनवाई नहीं हुई तो आंदोलन करेंगे।