भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों को सामान्य करने के लिए बैक चैनल से वार्ता करने वाले भारत के कुशल राजनयिक सतिंदर लांब नहीं रहे। पाकिस्तान में जन्मे एंबेसडर सती देश के धाकड़ राजनयिकों में गिने जाते हैं। उन्होंने भारत और पाकिस्तान के संबंधों पर पटरी पर लाने की पुरजोर कोशिश की थी।

हाइलाइट्स

  • भारत के पूर्व राजनयिक सतिंदर लांबा का निधन
  • उन्होंने पाकिस्तान में लंबे समय तक काम किया
  • बैक चैनल से भारत-पाक रिश्तों पर किया काम

नई दिल्ली: मैं उन लोगों में से एक हूं जिसने निजी तौर पर बंटवारे का दर्द झेला है। हमने अपना घर छोड़ा, सब चीजें वहीं रह गईं और हमें आजाद भारत में अपनी जिंदगी को नए सिरे से शुरू करना पड़ा, जहां हम बिना किसी पते के आए थे… ये शब्द भारत के उस राजनयिक के हैं जिसे कई साल पाकिस्तान में भारत के दूत के तौर पर काम करने का मौका मिला। डिप्लोमेसी के प्रोफेशन में देश के लिए शानदार उपलब्धियां हासिल करने वाले कुछ लोगों को पर्याप्त प्रसिद्धि नहीं मिलती। सतिंदर लांब (सती) भी उनमें से एक थे। 81 साल की उम्र में गुरुवार को दिल्ली में उनका निधन हो गया। वह (Satinder Lambah) ऐसे भारतीय राजनयिक रहे जिसने सेवा में रहने और रिटायरमेंट के बाद भी उन देशों के साथ संबंधों को आगे बढ़ाने के प्रयास किए जहां वे तैनात रहे। उनका सबसे बड़ा योगदान भारत और पाकिस्तान के संबंधों को पटरी पर लाने की वो कोशिश माना जाता है, जो अगर सफल हो जाता तो आज रिश्ते बेहतर रहते। एक समय हालात ठीक नहीं थे लेकिन पाकिस्तान में रहते हुए भी सती ने वहां कई दोस्त बना लिए थे।

बात मनमोहन के समय की है
तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के विशेष दूत (2005-2014) के तौर पर उन्होंने दोनों देशों के संबंधों को मजबूत करने के गंभीर प्रयास किए थे। पूर्व पीएम ने मिस्टर लांब को भारतीय विदेश सेवा के सबसे उत्कृष्ट सदस्यों में से एक कहा था, जिसने भारत और पाकिस्तान के संबंधों को पटरी पर लाने के लिए पूरी निष्ठा के साथ काम किया। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी एंबेसडर सती के निधन पर दुख जताया है। कई राजनयिकों ने सती को याद करते हुए उनके योगदान की चर्चा की है।

पाक में जन्मे और…
दरअसल, लांब का जन्म 1941 में पाकिस्तान के पेशावर में हुआ था। 6 साल बाद देश का बंटवारा हो गया और वह भारत आ गए। उनकी पत्नी का संबंध भी लाहौर से रहा है। विदेश सेवा में रहते हुए लांब 1978-81 तक पाकिस्तान में भारत के उप उच्चायुक्त और 1992-95 तक उच्चायुक्त रहे। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान के लिए उन्होंने संयुक्त सचिव की भी भूमिका निभाई। उन्होंने भारत-पाकिस्तान के संबंधों को पटरी पर लाने और शत्रुता को दोस्ती में बदलने की दिशा में काफी काम किया। उन्होंने भारतीय पीएम मनमोहन सिंह और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ के लिए बैक चैनल से काम किया। बताते हैं कि उस समय ‘फोर स्टेप फॉर्म्युला’ का मसौदा तैयार हो रहा था, जिससे जम्मू और कश्मीर पर आम सहमति भी बन सकती थी।

बताते हैं कि तीन साल में मुशर्रफ के भरोसमंद तारिक अजीज और भारतीय राजनयिक लांब ने कई देशों की राजधानियों में एक दर्जन बार गुप्त बैठकें की थीं। इस दौरान करीब एक हजार पन्नों के दस्तावेज तैयार किए गए जिनके आधार पर औपचारिक रूप से नेताओं के बीच बातचीत शुरू हो सके। भारत ने तब पाकिस्तान को कश्मीर पर एक मसौदा भी दिया था लेकिन पाकिस्तान की सरकार के लिए हालात बदल गए।

तभी हो गया मुंबई हमला
उसी दौरान मुंबई में 26/11 आतंकी हमला हो गया और पाकिस्तान ने गुनहगारों को सजा देने से इनकार कर दिया। इससे सती लांब की कोशिशें सफल होते-होते रह गईं। सती के उन तीन साल के कार्यकाल के दौरान हाल के दशकों में भारत-पाकिस्तान के रिश्ते सबसे अच्छे रहे। ट्रांस-कश्मीर एलओसी बस चली, वीजा नियमों में ढील दी गई, क्रिकेट मैच हुए और कई तरह के आदान-प्रदान होते रहे। 2005-08 का पीरियड द्विपक्षीय संबंधों के लिहाज से बेहतर कहा गया लेकिन पाकिस्तान ने आगे धोखा दे दिया।

इससे पहले जनरल जिया-उल हक के समय में भारत-पाकिस्तान के संबंध अच्छे नहीं थे। लेकिन तैनाती के समय आईएसआई की पल-पल निगरानी के बावजूद सती ने इस्लामाबाद में कई दोस्त बनाए और संपर्क विकसित किया। लाहौर समेत कई शहरों में उनके दोस्त बने।

पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्त जी. पार्थसारथी ने सती के निधन पर लिखा कि भारत ने अपने ऐसे डिप्लोमेट को खो दिया है जिसने बहुत मुश्किल हालात में भी देश को गर्व की अनुभूति कराई। वह व्यक्तिगत पब्लिसिटी से दूर रहते हुए अपने पेशेवर काम को बखूबी अंजाम देते थे। देश या विदेश में मीडिया से बात करते हुए वह सफलता का क्रेडिट खुद नहीं लेते थे। शुक्रवार को जब उनका अंतिम संस्कार हुआ, उस समय मीडिया के लोग भी पहुंचे हुए थे।