SC/ST कर्मचारियों के लिए प्रमोशन में रिजर्वेशन का रास्‍ता साफ होता दिख रहा है। केंद्र सरकार ऐसे कर्मचारियों के प्रतिनिधित्व पर डेटा जुटाने की प्रक्रिया शुरू करने वाली है। प्रमोशन में कोटा देने के लिए इस डेटा का न होना बाधा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर जरूरी शर्त लगा रखी है। इस बारे में ताजा फैसला 28 जनवरी को आया है।

Reservation in Promotion for SC/ST: अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के कर्मचारियों का प्रमोशन में कोटा मिलने का लंबा इंतजार खत्‍म होने वाला है। इसका रास्‍ता साफ होता दिख रहा है। केंद्र सरकार सभी स्‍तरों पर SC/ST कर्मचारियों के प्रतिनिधित्व पर डेटा जुटाने की प्रक्रिया शुरू करने वाली है। यह इन वर्गों में प्रमोशन में रिजर्वेशन (Reservation in Promotion) को लागू करने में महत्वपूर्ण पहला कदम है। हाल के वर्षों में यह वर्ग प्रमुख चुनावी ताकत के तौर पर उभरा है। एससी/एसटी के लिए प्रमोशन में रिजर्वेशन का मसला सालों से लटका है। इसका कारण SC/ST इम्‍प्‍लॉयी के संदर्भ में ऐसे डेटा का न होना है जिसे क्‍वांटिफाई यानी नापा (Collection of quantifiable data) जा सके। इसके चलते लगातार प्रदर्शन भी होते रहे हैं। सरकार इस मसले का जल्‍द से जल्‍द हल निकालना चाहती है।

पिछले दो दशकों में सुप्रीम कोर्ट के सभी फैसलों में इस तरह के क्‍वांटिफिएबल डेटा की बात की जाती रही है। प्रमोशन में कोटा देने लिए यह जरूरी कंडीशन है। कोर्ट इन वर्गों के प्रतिनिधित्‍व की अपर्याप्तता पर क्‍वांटिफिएबल डेटा के कलेक्‍शन की बात कहता रहा है। इस दिशा में सबसे ताजा फैसला 28 जनवरी को आया था। इसमें शीर्ष अदालत ने कोटा लागू करने से पहले डेटा के महत्व पर अपने रुख की समीक्षा करने से इनकार कर दिया था। दूसरे शब्‍दों में उसने साफ कर दिया था कि प्रमोशन में कोटा लागू करने के लिए डेटा कलेक्‍शन जरूरी है।

डीओपीटी ने जारी किया है आदेश
एचटी ने इसे लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। उसके अनुसार, केंद्रीय कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने 12 अप्रैल को एक आदेश जारी किया है। इसमें उसने सभी मंत्रालयों और विभागों को सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का पालन करने के लिए कहा है। छह वर्षों में यह पहली बार है जब उसने एससी-एसटी को प्रमोशन में रिजर्वेशन देने की प्रक्रिया शुरू की है।

रिपोर्ट कहती है कि ऐसा लगता है कि इस कदम का मकसद दोनों समुदायों की नाराजगी को दूर करना है। इन समूहों से संबंधित अधिकारियों को प्रमोशन के लिए इस दिशा में रास्‍ता साफ होने का इंतजार है। एससी-एसटी को सरकारी नौकरियों में क्रमशः 15% और 7.5% का रिजर्वेशन है। ये मिलकर देश की आबादी का एक चौथाई से ज्‍यादा हैं। हाल के वर्षों में चुनावी गणित को बनाने या बिगाड़ने में इनका दमखम देखा गया है। देश के तमाम राजनीतिक दल उनके समर्थन के लिए होड़ कर रहे हैं।

डीओपीटी के एक पूर्व कर्मचारी के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि पदोन्नति में आरक्षण की प्रक्रिया ठप थी। कारण है कि सरकार मुकदमों में फंसी थी।

सरकार करती रही है प्रयास
सरकार ने अपनी ओर से 2018 में अंतरिम आदेश जारी किया था। हालांकि, कोर्ट में चल रहे मामलों के कारण आदेश लागू नहीं हो सका। अधिकारी ने कहा कि सरकार ने जो कुछ भी करने की कोशिश की, उससे किसी एक या दूसरी अदालत के आदेश की अवमानना हो रही थी। लिहाजा, प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी।

सरकार के 12 अप्रैल को जारी मेमोरैंडम में कोर्ट के जनवरी के फैसले का हवाला दिया गया है। इसमें बताया गया है कि शीर्ष अदालत ने तीन शर्तें रखी हैं। पहला, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के संबंध में क्‍वांटिफिएबल डेटा का कलेक्‍शन। दूसरा, प्रत्येक काडर के लिए इस डेटा का लागू होना। तीसरा, काडर का पदोन्नति रोस्टर के संचालन की इकाई होना।

ज्ञापन में कहा गया है, ‘सभी मंत्रालयों को यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि प्रमोशन में आरक्षण की नीति को लागू करने और उसके आधार पर किसी भी पदोन्नति को लागू करने से पहले उपरोक्त शर्तों का पालन किया जाए।’

दस्तावेज में मंत्रालयों से यह भी कहा गया है कि रिजर्वेशन रोस्टरों को सख्ती से बनाए रखने के लिए एक संपर्क अधिकारी नियुक्त किया जाए। आदेश यह भी कहता है कि जारी किया गया कोई भी प्रमोशन ऑर्डर इस विषय पर लंबित मामलों के सुप्रीम कोर्ट के अगले आदेशों के अधीन होगा।