रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि मौजूदा वित्त वर्ष में राज्यों का पेंशन पर कुल खर्च 4 लाख करोड़ से ज्यादा है. जो राज्यों के कुल गैर विकास खर्च 12.44 लाख करोड़ के करीब एक तिहाई के बराबर है.

क्या नई पेंशन स्कीम की उल्टी गिनती शुरू होने वाली है? राजस्थान सरकार (Government of Rajasthan) की ओर से पुरानी पेंशन बहाली की घोषणा के बाद वित्त मंत्रालय से रिजर्व बैंक तक डर की शीत लहर दौड़ गई. सुधारों की पैरवी करने वाले विशेषज्ञों के गले भी यह फैसला नहीं उतर रहा. दो टूक सवाल यह है कि सरकार पैसा कहां से लाएगी? क्योंकि बजट पर पेंशन का बढ़ता बोझ कम करने के लिए ही तो नई पेंशन स्कीम (Pension Scheme) लागू की गई थी. रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) के आंकड़े बताते हैं कि मौजूदा वित्त वर्ष में राज्यों का पेंशन पर कुल खर्च 4 लाख करोड़ (406867.2) से ज्यादा है. जो राज्यों के कुल गैर विकास खर्च 12.44 लाख करोड़ के करीब एक तिहाई के बराबर है. राज्यों ने जो कर्ज ले रखा है हर साल उस पर 4 लाख करोड़ रुपए की ब्याज अदायगी है.

छत्तीसगढ़ और झारखंड सरकार भी कर रही है विचार

पुरानी पेंशन नए कर्ज लेकर शुरू की जाएगी तो ये दोनों ही बोझ और बढ़ेंगे. अब बात निकली है तो दूर तलक जाएगी. छत्तीसगढ़ और झारखंड की सरकारें अब पुरानी पेंशन लागू करने पर विचार कर रही हैं. उत्तर प्रदेश, हिमाचल जैसे राज्यों में भी यह चुनावी मुद्दा है. मध्य प्रदेश, हरियाणा में भी इस पर सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है. जरा सोचिए कि अगर बाकी राज्य सरकारें भी राजस्थान की राह पर चल निकली तो राज्यों के बजट का क्या होगा? राज्य सराकारें तो पहले से कर्ज में दबी हुई हैं. बानगी के तौर पर राजस्थान को ही लीजिए. राज्य की कुल बकाया देनदारी जीडीपी के करीब 40 फीसद के बराबर है. बजट में राज्य सरकार का अनुमान है कि अगले वित्त वर्ष में 28 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा कर्ज पर ब्याज चुकाने में खर्च हो जाएंगे.

अब यह समझिए कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की यह घोषणा वित्त मंत्रालय से आरबीआई तक का सिरदर्द क्यों बनी है? दर्द इन सवालों में है.

1. पहला सवाल- 1 अप्रैल से राज्य सरकार के कर्मचारियों की सैलरी में से कटौती बंद हो जाएगी? अगर हां तो हर माह शेयर बाजार और बॉण्ड बाजार में आने वाला कॉन्ट्रिब्यूशन भी बंद हो जाएगा. जैसे-जैसे राज्य बढ़ते जाएंगे हर माह आने वाली राशि घटती जाएगी. यानी सरकार के कर्ज का एक स्रोत बंद होगा.

2. दूसरा बड़ा सवाल- NPS में जमा पैसे का क्या होगा? क्या सरकार एनपीएस से अपना और कर्मचारियों का कॉन्ट्रिब्यूशन वापस लेगी? ऐसा करने पर क्या शेयर और बॉण्ड दोनों से बिकवाली की जाएगी? आपको बता दें कि राज्य सरकार के कर्मचारियों के कुल 55 लाख (5514516) से ज्यादा खाते एनपीएस में खुले हैं. जिनके कॉन्ट्रिब्यूशन से कुल 3.54 लाख करोड़ का एयूएम यानी एसेट अंडर मैनेजमेंट तैयार हो चुका है. आसान भाषा में समझें तो कुल इतना पैसा शेयर और बांड बाजार में निवेशित है.

3. तीसरा सवाल- राज्य सरकारें इसके लिए पैसा कहां से लाएंगी? नए कर्ज लेकर या नए टैक्स लगाकर? दोनों ही स्थितियां जनता पर बोझ बढ़ाएंगी. चुनावी अंगीठी पर नई पेंशन स्कीम को सेकने से पहले राज्य सरकारों को इन सवालों के जवाब तलाशने होंगे.