रेलवे में कर्मचारियों को नियमानुसार दी जाने वाली पदोन्नति प्रशासन की मर्जी बन गई है। रेलवे ने कई जूनियर कर्मचारियों को प्रमोशन देकर सीनियर बना दिया। दरअसल उत्तर-पश्चिम रेलवे मुख्यालय ने नवंबर 2003 में खाली हुए कार्यालय अधीक्षक के पदों पर विभागीय परीक्षा (एलडीसीई) के लिए सितंबर 2006 में अधिसूचना जारी की थी।

छठा वेतन आयोग के लागू होने से ठीक चार दिन पहले 31 सितंबर को परीक्षा आयोजित की। छठे वेतन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कार्यालय अधीक्षक (ओएस-।।) (पे स्केल 5500-9000) और प्रधान लिपिक (पे स्केल 5000-8000) को मर्ज कर नया पद कार्यालय अधीक्षक (9300-34800+ ग्रेड पे-4200) बनाया था।

दूसरी तरफ रेलवे ने इस सिफारिश को नहीं मानते हुए परीक्षा का परिणाम नवंबर 2008 में जारी कर एक साल बाद पैनल जारी किया। इसमें 25 कर्मचारियों (12 प्रधान लिपक, 12 वरिष्ठ लिपिक और 1 लिपिक) का चयन किया। रेलवे ने पे-कमीशन के आदेश को दरकिनार करते हुए पूर्व में कार्यरत प्रधान लिपिकों को कार्यालय अधीक्षक नहीं मानते हुए 13 जूनियर लिपिक को मई 2010 में कार्यालय अधीक्षक के पद पर पदोन्नति दे दी।

अब कैट के आदेशों को अपर कोर्ट में चुनौती देने की बजाय इन्हें सीनियरिटी देते हुए 1 करोड़ के एरियर भुगतान करने की तैयारी कर ली है। रेलवे के प्रिंसिपल सीपीओ के इस मनमाने तरीके से पदोन्नति दिए जाने से मुख्यालय और जयपुर सहित चारों मंडलों के करीब 225 सीनियर कर्मचारियों की पदोन्नति अटक गई है। करीब 15 से अधिक कर्मचारी बिना पदोन्नति के ही रिटायर हो गए हैं। प्रभावित कर्मचारियों ने रेलवे के कार्मिक और विधि विभाग के अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए विरोध करना शुरू कर दिया है।