रेलवे में निजी निवेश को लेकर संसद से सड़क तक चर्चा है। एक तरफ जहां रेल यूनियन केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कदम का विरोध कर रही है तो वहीं, केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल ने स्पष्ट कर दिया है कि रेलवे भारत की संपत्ति है और उसका कभी निजीकरण नहीं होगा।

दरअसल, रेलवे करीब 150 ट्रेनों को निजी निवेश द्वारा चलाना चाहता है, जिसका दबी जुबान से रेलकर्मी भी विरोध कर रहे हैं।

लोकसभा में अनुदानों की मांगों पर चर्चा का जवाब देते हुए पिछले दिनों निजीकरण को लेकर पीयूष गोयल ने अपना पक्ष रखा।

उन्होंने कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि कई सांसद निजीकरण और कॉर्पोरेटाइजेशन का आरोप लगाते हैं, लेकिन भारतीय रेल का कभी निजीकरण नहीं होगा।

आगे कहा कि विश्वस्तरीय रेलवे को बनाने के लिए धन की आवश्यकता होगी। निजी क्षेत्र से जो निवेश रेलवे में होगा उससे ना केवल यात्रियों को सुविधा मिलेगी, बल्कि रोजगार मिलेगा और देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी।

उधर, निजीकरण को लेकर रेल यूनियन ने भी मोर्चा खोल दिया है। ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन के महामंत्री शिवगोपाल मिश्रा लगातार निजीकरण की समीक्षा बैठक कर रहे हैं।

उन्होंने ‘अमर उजाला’ संवाददाता को बताया कि जरूरत पड़ी तो रेलवे की सभी यूनियन के साथ मिलकर निजीकरण का विरोध करेंगे।

रेल मंत्रालय कह रहा है कि ट्रेनों की संख्या कम नहीं कर रहे हैं। यदि निवेशक रेलवे की पटरी को इस्तेमाल कर ट्रेन चलाएंगे तो यह निजीकरण नहीं है तो क्या है। निजी ट्रेन चली तो गरीब जनता का क्या होगा? निजी ट्रेन चलेगी तो यात्रा किराया बढ़ जाएगा। सस्ती सुविधा खत्म हो जाएंगी। संरक्षा खतरे में पड़ जाएगा। कोई भी निजी निवेशक लाभ कमाने के लिए आएगा, जिससे रेलवे का पूरा तंत्र नष्ट हो जाएगा।

अगर निजी ट्रेन सफल हो जाती है, हालांकि ऐसी संभावना कम है, तो पूरे सिस्टम को नुकसान होगा। रेलवे के ऑपरेशन विभाग को तो कोई खतरा नहीं है, लेकिन बाकी सभी विभाग में नौकरियां चली जाएंगी। रेलवे को आमदनी होने के बजाय नुकसान होगा। निजीकरण थोपा गया तो यूनियन एक प्लेटफार्म पर आकर बड़ी लड़ाई लड़ेगी। सरकार पर दबाव के लिए हड़ताल भी करेंगे।
एक्शन प्लान बनाकर निजीकरण के विरोध में प्रस्ताव पास किया जाएगा।
नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवे मैन के महासचिव डॉ. एम रघुवैया ने बताया कि अगले महीने निजीकरण के विरोध के लिए वर्किंग कमेटी की बैठक है। इसमें 17 जोन व 7 प्रोडक्शन यूनिट के कर्मचारी हिस्सा लेंगे। एक्शन प्लान बनाकर निजीकरण के विरोध में प्रस्ताव पास किया जाएगा। निजीकरण देशहित के लिए खतरा है। 160 साल में रेल कर्मियों ने रेलवे के पूरे तंत्र को तैयार किया है।

इस पर निजी ट्रेन नहीं चलने देंगे। सरकार को अगर चलाना है तो अलग से ट्रैक, सिग्नलिंग, ऑपरेशन तैयार करे। कोविड काल भी रेल कर्मियों ने संकल्प के साथ काम किया। निजी निवेशक धन कमाने आएंगे। आम जनता को लूटेंगे। रेलवे का तंत्र इसलिए विकसित किया गया है कि देश में हर प्रजा की सेवा कर सके। हर व्यक्ति यात्रा कर सकें। यह रेलवे के 13 लाख कर्मचारियों के साथ ही सेवानिवृत्त कर्मचारियों के हक की लड़ाई है। इसे सड़क पर भी लड़ेंगे।

निजीकरण के पक्ष में रेलवे का तर्क
रेलवे भारत की संपत्ति है और उसका कभी भी निजीकरण नहीं होगा।
निजी क्षेत्र का निवेश देशहित में होगा।
यात्रियों को विश्व स्तरीय सुविधा मिलेगी और रोजगार बढ़ेगा।
देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।
निजी क्षेत्र जो सुविधा देगा वह भारतीय नागरिकों को मिलेगा।
नई-नई तकनीक मिलेगी।
सरकार व निजी क्षेत्र मिलकर काम करेंगे तो देश का भविष्य उज्ज्वल होगा।
 
रेल यूनियन का तर्क
 
रेलवे की पटरी पर निजी ट्रेन चलेंगी तो यह निजीकरण नहीं तो क्या है।
ऑपरेशन विभाग को छोड़ अन्य सभी विभाग के कर्मचारी बेरोजगार होंगे।
रेलवे का पूरा तंत्र नष्ट हो जाएगा।
रेल किराया बढ़ जाएगा और गरीबों को यात्रा करने में जेब ढीली करनी होगी।
निजी निवेशक लाभ कमाने आएंगे, रेलवे की आमदनी घट जाएगी।
निजी ट्रेन चली तो भारतीय रेलवे की ट्रेनों को नुकसान होगा।