देश में बीते कुछ समय से इस बात की चर्चा चल रही है कि आने वाले समय में लोगों को सप्ताह में सिर्फ चार दिन नौकरी करनी पड़ेगी। केंद्र सरकार इसके लिए योजना बना रही है। आज यानी बुधवार को संसद में इसको लेकर एक सवाल पूछा गया था। इसके जवाब में केंद्रीय श्रम मंत्री ने कहा कि कार्यालयों के लिए सप्ताह में चार दिन या 40 घंटे की कार्य व्यवस्था शुरू करने की केंद्र की कोई योजना नहीं है।

श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने लोकसभा में एक लिखित जवाब में कहा, “वर्तमान में, केंद्र सरकार के अधिकारियों के लिए सप्ताह में चार दिन या 40 घंटे की व्यवस्था लागू करने का कोई प्रस्ताव नहीं है।”

उन्होंने कहा, “चौथे वेतन आयोग की सिफारिश के आधार पर, सप्ताह में पांच दिन और भारत सरकार के नागरिक प्रशासनिक कार्यालयों में प्रतिदिन साढ़े आठ घंटे काम किया जाता है।” सातवें केंद्रीय वेतन आयोग ने भी अपनी सिफारिश इसे बनाए रखा।

इससे पहले खबर आई थी कि नए श्रम कानूनों के तहत आने वाले दिनों में हफ्ते में तीन दिन छुट्टी का प्रावधान संभव है। श्रम मंत्रालय के मुताबिक केंद्र सरकार हफ्ते में चार कामकाजी दिन और उसके साथ तीन दिन वैतनिक छुट्टी का विकल्प देने की तैयारी कर रही है। इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि नए लेबर कोड में नियमों में ये विकल्प भी रखा जाएगा, जिस पर कंपनी और कर्मचारी आपसी सहमति से फैसला ले सकते हैं। नए नियमों के तहत सरकार ने काम के घंटों को बढ़ाकर 12 तक करने को शामिल किया है। काम करने के घंटों की हफ्ते में अधिकतम सीमा 48 है, ऐसे में कामकाजी दिनों का दायरा पांच से घट सकता है।

ईपीएफ के नये नियम: ईपीएफ पर टैक्स लगाने को लेकर बजट में हुए ऐलान पर और जानकारी देते हुए श्रम सचिव ने कहा कि इसमें ढाई लाख रुपये से ज्यादा निवेश होने के लिए टैक्स सिर्फ कर्मचारी के योगदान पर लगेगा। कंपनी की तरफ से होने वाला अंशदान इसके दायरे में नहीं आएगा या उस पर कोई बोझ नहीं पडे़गा। साथ ही छूट के लिए ईपीएफ और पीपीएफ भी नही जोड़ा जा सकता। ज्यादा वेतन पाने वाले लोगों की तरफ से होने वाले बड़े निवेश और ब्याज पर खर्च बढ़ने की वजह से सरकार ने ये फैसला लिया है। श्रम मंत्रालय के मुताबिक 6 करोड़ में से सिर्फ एक लाख 23 हजार अंशधारक पर ही इन नए नियमों का असर होगा।