रेलवे में अंग्रेजों के वक्त से चली आ रही बंगला चपरासी रखने की व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया है। अभी तक इस पद पर अधिकारी अपने बंगले पर एक कर्मचारी की अस्थायी नियुक्ति कर लेते थे, जिसकी तीन साल की सेवा पूरी होने पर उसे स्क्रीनिंग टेस्ट के बाद स्थायी पोस्टिंग मिल जाती थी। इस संबंध में रेलवे बोर्ड ने आदेश जारी कर दिए हैं।

रेलवे में बंगला चपरासी यानी अटेंडेंट कम डाक खालिस (टीकेडीके) को ग्रुप डी श्रेणी में अस्थायी कर्मचारी माना जाता है। इनकी नियुक्ति रेलवे अधिकारियों के घरों में की जाती है, जिनका कार्य फोन अटेंड करना और अपने कार्यालयों से घरों तक फाइलें ले जाने का होता है। तीन साल की सेवा पूरी होने पर स्क्रीनिंग टेस्ट के बाद इस पद पर स्थायी पोस्टिंग हो जाती है। इस पद पर अब कोई नई नियुक्ति नहीं होगी। मगर सालों से अधिकारी उक्त कामों की जगह अपने घर के कामों के लिए किया जा रहा था। इस नियुक्ति में अधिकारी अपने ही रिश्तेदार या परिचित को ही रखवाने में ज्यादा विश्वास रखते हैं। रेलवे बोर्ड इस व्यवस्था पर लंबे समय से चिंतन कर रहा है। विगत छह अगस्त को भी इस विषय पर मंथन हुआ था। जहां इसको लागू कर दिया गया था। रेलवे बोर्ड के डायरेक्टर एमएम राय ने एक दिसंबर को जारी अपने पत्र में उक्त नियुक्ति पर रोक लगा दी है।

बंगलों पर लगे हैं 200 से अधिक कर्मी झांसी रेल मंडल में 50 से अधिक अधिकारी हैं। सभी विभागों के अधिकारियों ने अपने यहां के कई चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को अपने घर पर काम पर लगा रखा है। इनमें गैंगमैन, प्वाइट्समैन, खलासी, चपरासी आदि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी शामिल हैं। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों पर काम पर लगाना नियम विरुद्ध है, लेकिन यह व्यवस्था सालों से चल रही है।