आने वाले समय में निजी ट्रेनों की सरकारी अधिकारियों द्वारा जांच का नियम इस बात पर हटाया जा सकता है कि प्राइवेट ऑपरेटर खुद ट्रेन को सुरक्षित चलने का सत्यापन करेंगी।

भारतीय रेलवे में निजीकरण के लिए जगह बनाने से देशभर में कई लोग नाराज हैं। हालांकि, रेलवे इसे रेल नेटवर्क के विकास के लिए अहम कदम बताती आई है। अब इसी सिलसिले में नीति आयोग और रेलवे अधिकारियों ने पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप अप्रेजल कमेटी (PPPAC) के साथ 151 निजी ट्रेनें चलाने के मुद्दे पर आ रही अड़चनों पर बैठक की। इसमें फैसला हुआ कि जो भी प्राइवेट फर्म यात्री ट्रेनों को चलाएंगी, उन्हें रेलवे को प्रोजेक्ट में आई लागत का तीन फीसदी हिस्सा सिक्योरिटी डिपॉजिट के तौर पर रेलवे को ही जमा करना होगा। इतना ही नहीं सुरक्षा मानक सुनिश्चित करने के लिए रेलवे अधिकारी सरकारी ट्रेनों की ही तरह प्राइवेट ट्रेनों की भी स्टेशन से निकलने से पहले जांच करेंगे।

सूत्रों के मुताबिक, नीति आयोग के अधिकारियों को लगा कि निजी कंपनियां, जो कि निवेश लाती हैं और प्रोजेक्ट से जुड़े जोखिम लेती हैं, उन्हें सिक्योरिटी डिपॉजिट जमा करने की जरूरत नहीं है। आयोग इस कदम के जरिए प्राइवेट कंपनियों के लिए व्यापार को आसान रखना चाहता था। बताया गया है कि यह कंपनियां जिन 12 क्लस्टर में निजी ट्रेनें चलाई जा रही हैं, वहां 30 हजार करोड़ रुपए तक का निवेश करेंगी। ऐसे में किसी भी कंपनी के लिए अनुमानित सिक्योरिटी डिपॉजिट एक हजार करोड़ रुपए के आसपास बैठेगा।

मीटिंग में यह भी फैसला हुआ कि अगर कोई कंपनी अपनी आर्थिक जिम्मेदारियां वहन करने या सेवा मुहैया कराने के काबिल नहीं रही, तो सरकार के पास कुछ आर्थिक उत्तोलन होना चाहिए, जिससे कि काम में कोई रुकावट न आए। PPPAC के सूत्रों ने कहा कि इसीलिए निजी कंपनियों से सिक्योरिटी डिपॉजिट लेने की बात पर सहमति बन गई।

दूसरी तरफ ट्रेनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए स्टेशन से निकलने से पहले उनकी जांच जैसे मुद्दों पर प्राइवेट कंपनियों ने कोई आपत्ति नहीं जाहिर की। हालांकि, बैठक में इस पर बात हुई कि आने वाले समय में सरकारी अधिकारियों द्वारा जांच का नियम इस बात पर हटाया जा सकता है कि प्राइवेट ऑपरेटर खुद ट्रेन को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी लेंगे।

बता दें कि रेल मंत्रलाय फिलहाल प्राइवेट रूटों पर कंपनियों को अनुमति देने से जुड़ी प्रक्रिया चला रहा है। अब तक लार्सेन एंड टूब्रो (L&T), GMR और BHEL समेत 15 कंपनियां 12 क्लस्टर के लिए 120 बोलियां लगा चुकी हैं। सूत्रों के मुताबिक, इनमें से 10 बोलियों को विश्लेषण के बाद अयोग्य करार दिया जा चुका है।