लोकसभा सचिवालय ने 19 अक्टूबर को नार्दन रेलवे कैटरिंग डिविजन को पत्र जारी कर संसद भवन की चारों कैंटीनों के सभी सामान और क्रॉकरी को 15 नवंबर को आइटीडीसी को सौंपने का निर्देश जारी किया है। हालांकि रेलवे से कैंटीनों का जिम्मा छीने जाने का कारण नहीं बताया गया है।

संसद के नये भवन निर्माण से पहले ही संसद परिसर की व्यवस्था में बदलाव की शुरुआत होने लगी है। 42 साल बाद संसद भवन में रेलवे की कैंटीनें अब इतिहास का हिस्सा बन जाएंगी। लोकसभा सचिवालय ने रेलवे से कैंटीनों की जिम्मेदारी वापस लेकर उसे 15 नवंबर को भारत पर्यटन विकास निगम (आइटीडीसी) को सौंपने का फैसला किया है। 

इस फैसले से साफ है कि आइटीडीसी अब शीतकालीन सत्र से संसद भवन परिसर की चारों कैंटीन में खान-पान की व्यवस्था देखेगी। इसी के साथ ही कैंटीन सब्सिडी की बची-खुची मामूली रियायतें भी समाप्त हो जाएंगी। ऐसे में संसद की कैंटीनों में चाय-नाश्ते से लेकर खाना-पीना सब कुछ महंगा होगा। लोकसभा सचिवालय ने संसद की कैंटीनों में सब्सिडी को लेकर उठे सवालों को देखते हुए व्यवस्था में बदलाव का मन तो इस साल की शुरुआत में ही बना लिया था। 

आइटीडीसी नये कैंटीन आपरेटर के रूप में शार्ट लिस्ट भी हो चुका था। लेकिन चार दशक से भी अधिक समय से संसद की कैंटीनों का संचालन कर रही रेलवे कैटरिंग सर्विस के प्रबंधकों और संचालकों को उम्मीद नहीं थी कि लोकसभा उसका बोरिया बिस्तर बांध कैंटीन को एक नये आपरेटर के हवाले कर देगा। 

लोकसभा सचिवालय ने 19 अक्टूबर को नार्दन रेलवे कैटरिंग डिविजन को पत्र जारी कर संसद भवन की चारों कैंटीनों के सभी सामान और क्रॉकरी को 15 नवंबर को आइटीडीसी को सौंपने का निर्देश जारी किया है। हालांकि, रेलवे से कैंटीनों का जिम्मा छीने जाने का कारण नहीं बताया गया है। संसद की कैंटीनों में तैनात रेलवे कैटरिंग के सभी कर्मचारियों को भी वापस उनके कैडर में भेजने का निर्देश दिया गया है। 

संसद के मुख्य भवन के अलावा रिसेप्शन, लाइब्रेरी बिल्डिंग और संसदीय सौध में चल रही रेलवे की कैंटीनों में करीब 450 कर्मचारी काम करते हैं। ये सभी रेलवे के कर्मचारी हैं। इसीलिए, वे वापस उनके विभाग को लौटा दिए जाएंगे। खान-पान की व्यवस्था में आ रही परेशानी को देखते हुए 1968 में रेलवे को कैंटीन चलाने का जिम्मा दिया गया था। 

बताया जाता है कि साल्वे कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर 1971 में इसमें सुधार हुआ और रियायती दरों पर खान-पान उपलब्ध कराया जाने लगा। 1972 में संसदीय सौध में कैंटीन खुली तो लाइब्रेरी बिल्डिंग की कैंटीन 2002 में वाजपेयी सरकार के दौरान शुरू हुई। संसद भवन की कैंटीनों में खाने-पीने की वस्तुओं के रियायती होने को लेकर लंबे समय से वाद-विवाद होता रहा है। माना जा रहा है कि इस विवाद का अंत करने के लिए ही पांच सितारा होटलों का संचालन करने वाले भारत सरकार के उपक्रम आइटीडीसी को यह काम सौंपा जा रहा है। 

सांसदों ने खुद ही दिसंबर 2019 में कैंटीन सब्सिडी खत्म करने के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी थी। ऐसे में आइटीडीसी संसद में जो भी खाना परोसेगी उसकी कीमतें ज्यादा होंगी। संसद की कैंटीन की सब्सिडी इस समय करीब 18 करोड़ है जिसमें खाने-पीने के सामानों पर सब्सिडी एक करोड़ रुपये से कुछ ज्यादा है। जबकि बाकी करीब 17 करोड़ रुपये रेलवे अपने 450 कर्मचारियों को दिए जाने वाले वेतन के हिस्से के रूप में लेता है।