रेलवे ने कोरोना संक्रमण के चलते ट्रेनों के एसी कोच में बेडरोल, चादर और तकिया की सुविधाएं तो बंद कर दीं, लेकिन किराये में बदलाव नहीं किया है। अब यात्री सवाल कर रहे हैं कि जब सुविधाएं नहीं दी जा रहीं तो उनका किराया क्यों लिया जा रहा है।

कोरोना संकट के कारण मार्च से ही एसी कोचों से बेडरोल, चादर के साथ ही खिड़कियों से पर्दे भी हटा दिये गये। पहली जून से ट्रेनें चलनी शुरू हुईं तब से ये सुविधाएं बंद हैं। यात्री घर से बेडरोल व चादर लेकर जाएं या फिर ऐसे ही यात्रा करें। किराये से कैटरिंग सेवा का शुल्क हटा दिया गया, लेकिन बेडरोल व चादर का शुल्क नहीं हटा है। वंदेभारत एक्सप्रेस में केटरिंग शुल्क घटाकर किराया लिया जा रहा है। 

हर माह 33 लाख की बचत
वाराणसी मंडल में मंडुवाडीह और छपरा में दो लाउंड्री हैं। वहां कपड़ों की सफाई और वितरण होता है। दोनों लाउंड्री बंद होने से रेलवे को 33 लाख रुपये प्रति माह की बचत हो रही है। रेलवे अपनी बचत तो कर ले रहा है लेकिन यात्रियों की जेब का बोझ हल्का नहीं कर रहा। कैंट स्टेशन की भी लाउंड्री से 10 लाख रुपये प्रति माह की बचत हो रही है। 

अतिरिक्त शुल्क लेकर सुविधा देने की तैयारी 
रेल सूत्रों के अनुसार रेलवे यह सुविधा हमेशा के लिए बंद कर सकती है। एसी के अलावा कोई भी यात्री रुपये अदा कर इसकी सुविधा ले सकेगा। उक्त चादर, कंबल व तौलिया एक बार के इस्तेमाल लायक ही होगा। आईआरसीटीसी के जरिये भुगतान कर कंबल, चादर प्राप्त किया जा सकेगा।  

क्या बोले यात्री
नई दिल्ली की यात्रा पर निकले नगर निगम के कर्मचारी दिनेश पाल का कहना है कि रेलवे किराया से बेडरोल व चादर का शुल्क भी हटाया जाना चाहिए। जब सुविधा नहीं तो शुल्क कैसा। सिगरा क्षेत्र के सीताराम भी कैंट स्टेशन से नई दिल्ली जा रहे थे। कहा, चादर-बेडरोल की सुविधा खत्म कर दी गई, कैटरिंग की तरह इसका किराया भी हटाया जाना चाहिए।