देश की पहली पूरी तरह से प्राइवेट ट्रेन दो वर्ष बाद पटरी पर दौड़ पाएगी। लेकिन प्राइवेट ट्रेन चलाना आसान काम नहीं है और इसलिए रेलवे बोर्ड बहुत फूंक-फूंक कर कदम उठा रहा है। अब तक दो दौर की बैठक हो चुकी है।

रेलवे बोर्ड के चेयरमैन विनोद यादव ने खास चर्चा में कहा कि सौ रूटों पर डेढ़ सौ प्राइवेट ट्रेने चलाने का निर्णय यात्री सुविधाओं तथा ‘ऑन डिमांड रिजर्वेशन’ की मांग को देखते हुए जरूरी माना गया है। रेलवे अभी 13 हजार पैसेंजर ट्रेने चला रहा है। चार-पांच वर्ष बाद डेढ़-दो हजार ट्रेने और चलाने की जरूरत पड़ेगी। विनोद यादव का कहना है कि अभी मालूम कि इसमें कितनी सफलता मिलेगी। और इसीलिए बहुत फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं।








ये पहला मौका है जब रेलवे पूरी तरह से निजी कंपनियों को प्राइवेट ट्रेने चलाने का मौका देने जा रहा है। इससे पहले अभी तक ‘तेजस’ नाम से जो दो प्राइवेट ट्रेने चलाई गई हैं उन्हें आइआरसीटीसी पीपीपी मॉडल पर निजी कंपनियों की साझेदारी में चला रहा है।

अब तक की चर्चाओं में देश-विदेश की लगभग दो दर्जन कंपनियों ने प्राइवेट ट्रेन चलाने में रुचि दिखाई है। इन चर्चाओं के आधार पर ही आरएफक्यू बिड डाक्यूमेंट तैयार होगा जिसके जरिए ट्रेन चलाने में सक्षम कंपनियों का अकेले या कंसोर्टियम के रूप में चयन किया जाएगा। उसके बाद इन चयनित कंपनियों से वित्तीय बोली आमंत्रित की जाएंगी। जिसमें रेलवे को सर्वाधिक राजस्व का प्रस्ताव करने वाली कंपनियों को ट्रेन संचालन की जिम्मेदारी दी जाएगी। राजस्व में हिस्सेदारी के अलावा प्राइवेट ट्रेन चलाने वाले सभी आपरेटर रेलवे को रूट की लंबाई के हिसाब से हालेज शुल्क भी अदा करना होगा। ये हालेज शुल्क 668 रुपये प्रति किलोमीटर होगा। प्राइवेट ट्रेन आपरेटरों को ट्रेन का किराया तय करने का अधिकार होगा।



विमान सेवाओं की तरह रेलवे किराये की कोई सीमा तय नहीं करेगी और इसे बाजार शक्तियों पर छोड़ देगी। हालांकि कुछ हद तक रेलवे की अपनी ट्रेने प्राइवेट ट्रेनों के किराये पर अकुंश रखने का काम करेंगी। ट्रेन के भीतर सेवाओं, सुविधाओं और सुरक्षा के लिए ट्रेन आपरेटर अपना स्टाफ रखने को स्वतंत्र होंगे। ट्रेन के रखरखाव की जिम्मेदारी भी उनकी होगी। केवल ड्राइवर और गार्ड रेलवे के रहेंेगे।




क्या प्राइवेट ट्रेनों के रेक पूरी तरह भारत में बनेंगे या इन्हें विदेशों से भी आयात किया जा सकेगा? इस सवाल के जवाब में यादव का कहना था कि प्राइवेट आपरेटरों को ‘मेक इन इंडिया’ के तहत रेक का इंतजाम करना होगा। जिसका मतलब है कि वे जो भी रेक खरीदेंगे उसमें 51 फीसद कलपुर्जे भारत में निर्मित होने चाहिए। वंदे भारत की रेकें भी इसी सिद्धांत पर बनाई जा रही हैं। प्राइवेट कंपनियां चाहें तो वंदे भारत की रेक का इस्तेमाल भी कर सकती हैं और चाहें तो कोई दूसरी नई रेक भी खरीद सकती हैं। लेकिन उसका 51 फीसद निर्माण भारत में आरडीएसओ के मानकों के अनुसार करने की शर्त होगी। पहली पूरी तरह प्राइवेट ट्रेन चलने में लगभग दो वर्ष का वक्त लग सकता है।