पर्यावरण संरक्षण और यात्री क्षमता बढ़ाने के लिए ट्रेनों में विशेष इंजन लगाए जा रहे हैं जिससे ट्रेन के कोच में रोशनी व एयर कंडीशनर (एसी) चलाने के लिए जेनरेटर की जरूरत नहीं पड़ती है। इस तकनीक को हेड ऑन जेनरेशन (एचओजी) और इंजन को होटल लोडेड इंजन कहा जाता है। इंजन में लगा हुआ कनवर्टर ओएचई (ओवर हेड इलेक्ट्रिसिटी) से आने वाली बिजली को परिवर्तित करके बल्ब, पंखे और एसी चलाने के लिए कोच तक स्थानांतरित करता है। इस तरह के इंजन लगने से ट्रेन में जेनरेटर यान लगाने की जरूरत नहीं होती है। उत्तर रेलवे की 14 जोड़ी ट्रेनों में इस तकनीक का उपयोग किया जा रहा है जिससे प्रतिवर्ष डीजल पर होने वाले 42 करोड़ रुपये की बचत हो रही है। जल्द ही अन्य ट्रेनों में भी इस तरह के इंजन लगाए जाएंगे।








कालका शताब्दी से हुई थी इस तकनीक की शुरुआत: पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर वर्ष 2015 में कालका शताब्दी में एचओजी इंजन लगाया गया था। शताब्दी में ट्रायल सफल होने के बाद मुंबई राजधानी एक्सप्रेस में भी इसका ट्रायल किया गया। दोनों में सकारात्मक परिणाम मिलने के बाद लखनऊ शताब्दी, नई दिल्ली से कालका के बीच चलने वाली दोनों शताब्दी, नई दिल्ली से अमृतसर के बीच चलने वाली दोनों शताब्दी और देहरादून शताब्दी एक्सप्रेस, डिब्रूगढ़ राजधानी, जम्मूतवी राजधानी, बिलासपुर राजधानी व रांची राजधानी के साथ ही आनंद विहार टर्मिनल-मधुपुर हमसफर एक्सप्रेस, दिल्ली सराय रोहिल्ला उधमपुर वातानुकूलित एक्सप्रेस, ताज एक्सप्रेस और शान-ए-पंजाब एक्सप्रेस में एचओजी प्रणाली वाले इंजन लगाए गए हैं।




11 जोड़ी ट्रेनों में जल्द लगेगा एचओजी इंजन: रेलवे अधिकारियों का कहना है कि जल्द ही दो शताब्दी एक्सप्रेस, दो दुरंतो एक्सप्रेस और सात मेल व एक्सप्रेस ट्रेनों में भी एचओजी इंजन लगाए जाएंगे, इसकी तैयारी चल रही है।

परंपरागत रूप से कोच में बिजली आपूर्ति की व्यवस्था: कोच में एसी, बिजली पंखे, चार्जिग प्वाइंट्स और रसोई यान में लगने वाली बिजली (जिसे सामूहिक रूप से ‘होटल लोड’ कहा जाता है) आपूर्ति के लिए ट्रेन के दोनों सिरों पर पावर कार लगाए जाते हैं। इसमें लगे जेनरेटर के जरिये बिजली आपूर्ति की जाती है। इस व्यवस्था को ‘हेड ऑन जेनरेशन’ प्रणाली कहा जाता है। इससे कोच में बिजली की आपूर्ति विद्युत लोकोमोटिव (इलेक्ट्रिक इंजन) से की जाती है। इंजन के पेंटोग्राफ के जरिये मिलने वाली बिजली को कन्वर्ट करके कोच में आपूर्ति की जाती है।




यात्रियों को उपलब्ध होंगीं ज्यादा सीटें: जेनरेटर यान नहीं लगने से ट्रेन में दो अतिरिक्त यात्री कोच लगाए जा सकते हैं। इससे ट्रेन के प्रत्येक फेरे में लगभग डेढ़ सौ अतिरिक्त सीटें उपलब्ध होंगी। इससे जहां रेलवे को अतिरिक्त राजस्व मिलेगा वहीं यात्रियों को कन्फर्म टिकट।

वायु व ध्वनि प्रदूषण से मिलती है राहत: उत्तर रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी दीपक कुमार का कहना है कि यह तकनीक पर्यावरण के अनुकूल, किफायती और परिचालन में लाभदायक है। इस तरह के इंजन लगने से ट्रेन में बिजली आपूर्ति के लिए डीजल का उपयोग नहीं होता है जिससे वायु प्रदूषण में कमी आती है। वहीं, जेनरेटर यान से होने वाले ध्वनि प्रदूषण से भी राहत मिलती है।

’>>उत्तर रेलवे दे रहा है एचओजी तकनीक वाले इंजन का बढ़ावा

’>>इस तकनीक से जेनरेटर यान लगाने की जरूरत नहीं होती

हेड ऑन जनरेशन तकनीक वाला इंजन ’