वक्त- शुक्रवार की रात 12.30 बजे। बीसीएम मशीन से इंजीनियर अपने दो कर्मचारियों के साथ दुर्ग-बिलासपुर सेक्शन के हथबंद स्टेशन के समीप पहुंचे। वहां वे डाउन लाइन पर एसएंडटी के गियर बॉक्स का काम करने में जुट गए।

इसके बाद उनकी बीसीएम मशीन तिल्दा की ओर चली। इंजीनियर एक बजे मिडिल लाइन की तरफ बढ़े ही थे, तभी अचानक गोंदिया बरौनी एक्सप्रेस आ गई। न हॉर्न बजा, न लाइट दिखी। 10 से 12 कदम दूर पहुंची ट्रेन को देखकर इंजीनियर के साथ चल रहे हेल्पर डीके मिश्रा चिल्लाकर कूद गए, लेकिन इंजीनियर अमूल्य कुमार चांद और संकेत अनुरक्षक चंद्रप्रकाश सिंह पीछे मुड़े ही थे कि ट्रेन ने उन्हें चपेट में ले लिया।







कट जाने से दोनों दर्द से तड़पने लगे। इसकी सूचना हेल्पर ने तल्काल संकेत विभाग के अधिकारियों को दी। करीब 20 वर्करों की टीम वहां से गुजर रही गीतांजलि एक्सप्रेस से उन्हें रायपुर रेलवे स्टेशन ले आई, लेकिन घटना के बाद 20 मिनट का वक्त लग गया। तब तक ज्यादा खून बह जाने से स्टेशन में पहुंचे डॉक्टरों ने इंजीनियर को मृत घोषित कर दिया। घायल अनुरक्षक चंद्रप्रकाश को डब्ल्यूआरएस कॉलोनी रेलवे अस्पताल लाया गया। स्थिति गंभीर होने के बाद उन्हें रामकृष्ण अस्पताल रेफर कर दिया गया।

मेगा ब्लॉक में कर रहे थे मेंटेनेंस की तैयारी

दुर्ग-बिलासपुर सेक्शन हथबंद और तिल्दा के बीच मेगा ब्लॉक लिया गया था। इस दौरान इंजीनियर अपने कर्मचारियों के साथ मेंटनेंस कर रहे थे। वे पटरी के सेक्शन के बीच सर्किट केबिल की जांच भी कर रहे थे, ताकि सेक्शन के सिग्नल में कोई रुकावट न हो। विभागीय जानकारी के मुताबिक मशीन के काम करने के दौरान पटरी के किनारे सर्किट बॉक्स की जांच की जाती है। इसी से सिग्नल संचालित होते हैं।




मशीन की तेज रोशनी के कारण नहीं दिखी ट्रेन

मिडिल लाइन पर गोंदिया बरौनी एक्सप्रेस के ड्राइवर ने हॉर्न नहीं बजाया। उधर से डाउन लाइन पर मशीन की आवाज से ट्रेन की आवाज दब गई। यही नहीं, मशीन की तेज रोशनी के चलते ट्रेन की लाइट भी नहीं दिखी। ऐसे में पीछे आ रही ट्रेन ने उन्हें चपेट में ले लिया। घटना के बाद सिर्फ एक बार हॉर्न बजा, लेकिन तब तक सब कुछ खत्म हो गया था।

चलो केबिल भी देख लेते हैं, नौकरी का सवाल है

हादसे में बचे हेल्पर डीके मिश्रा ने बताया- इंजीनियर साहब बोले- चलो काम होने से पूर्व केबिल की जांच कर लेते हैं, क्योंकि नौकरी का सवाल है। अगर सर्किट बॉक्स का केबल कटा तो ट्रेनें रुक जाएंगी और दिल्ली तक बवाल मच जाएगा। यही सोचकर हम लोग निकले थे।

कटने के बाद इंजीनियर तड़पते हुए बोले- बचा लो मिश्रा जी…

उधर से मिडिल लाइन से लौटते समय जैसे ही ट्रेन दिखी तो मैं चिल्लाया कि साहब कूदिए, लेकिन उन्हें संभलने का मौका तक नहीं मिला। इंजीनियर और घायल अनुरक्षक खून से लथपथ होकर चिल्लाने लगे। आखिरी दम तक चिल्लाते रहे- अरे बचा लो मिश्रा जी, लेकिन हादसे को देखने के बाद एक मिनट के लिए दिमाग ही शून्य हो गया था। किसी तरह वर्करों को बुलाया।

रेलवे अस्पताल में रेल यूनियन के पदाधिकारियों ने डीआरएम को घेरा

घटना की सूचना मिलने के बाद पहुंचे रेल यूनियन के पदाधिकारियों ने विरोध-प्रदर्शन किया। मौके पर सूचना मिलने पर रेलवे अस्पताल पहुंचे डीआरएम कौशल किशोर को जमकर खरी-खोटी सुनाई। उनका कहना था कि कर्मचारियों को सुरक्षा के उपकरण दिए जाने चाहिए थे। वहीं संकेत नियंत्रण (सिग्नल विभाग) के इंजीनियरों और कर्मचारियों से 12 से 16 घंटे तक काम लिया जाता है। समय घटाने की मांग भी कई बार की गई थी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। इसके साथ ही रेल प्रशासन के खिलाफ यूनियन ने नारेबाजी की।




संकेत नियंत्रण के वरिष्ठ मंडल दूरसंचार के इंजीनियर के निलंबन की मांग

दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे मजदूर संघ, श्रमिक यूनियन, मजदूर कांग्रेस, ट्रैकमैन एसोसिएशन, ओबीसी और एसटीएसी एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने संकेत नियंत्रण के वरिष्ठ मंडल दूरसंचार के इंजीनियर के निलंबन की मांग की। उन्होंने आरोप लगाया कि वे दबाव बनाकर तय समय से अधिक ड्यूटी कराते हैं।

ब्लड डोनेट करने के लिए रामकृष्ण अस्पताल पहुंचे कर्मचारी

रामकृष्ण अस्पताल में भर्ती गंभीर रूप से घायल चंद्रप्रकाश सिंह को ब्लड डोनेट करने के लिए भी लोग पहुंच गए थे। इस दौरान दो लोगों ने रक्तदान किया। डॉक्टर के मुताबिक अभी स्थिति गंभीर है। अंदरूनी चोटें भी आई हैं। बाया पैर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया है।

परिजनों पर टूटा दुख का पहाड़, पत्नी की गोद में आठ माह की बच्ची

मृत इंजीनियर के परिवार पर दुख का पहाड़ टूट गया है। ओडिशा से पहुंचे परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल था, लेकिन इस दुख की घड़ी में एक कर्मचारी ने बताया कि इंजीनियर की आठ माह की बेटी है। हादसे को देखते हुए परिजन उनकी पत्नी को यहां नहीं लाए थे। आंबेडकर अस्पताल में पोस्टमार्टम कराने के बाद परिजन उनके शव को ओडिशा पैतृक गांव जिला झारसुगुड़ा ले गए।

कॉशन परमिशन में चूका रेलवे

जब कभी किसी सेक्शन के बीच मेगा ब्लॉक लिया जाता है, उसकी अप और मिडिल लाइन पर कॉशन परमिशन लेने का प्रावधान है। ऐसे में अगर डाउन लाइन पर काम हो रहा था तो मिडिल लाइन पर आने वाली ट्रेनों के ड्राइवर को मैप दिया जाता है। जिस सेक्शन पर काम हो रहा होता है, ट्रेन के सेक्शन की सीमा में पहुंचने से पूर्व लगातार हॉर्न बजाने के साथ ही स्पीड कम करनी होती है।

कुछ तरह था काम का बंटवारा

1-इंजीनियर और अनुरक्षक के एक हेल्पर, जो लाइन जांच रहे थे।

2-बाकी वर्कर रेलवे लाइन के नट-बोल्ट को बदलने में जुटे थे।

3-पटरियों को दुरुस्त करने में 20 से अधिक वर्कर मौजूद रहे।

ये होने चाहिए सुरक्षा के इंतजाम

1-ब्लॉक के दौरान रेड रिफलेक्टर जैकेट।

2-टॉर्च और हाथ में दस्ताने।

3-करंट से बचने के लिए बूट का इस्तेमाल।