एक कहावत है कि वकील और डॉक्टर से कुछ नहीं छिपाना चाहिए। इसके पीछे सीधा सा तर्क है कि वकील आपका केस सही तरह से तभी लड़ पाएगा, जब उसे सच पता हो और डॉक्टर सही इलाज तभी कर सकेगा, जब आपकी पूरी परेशानी उसे पता हो। होम्योपैथी जैसी चिकित्सा पद्धति तो काफी हद तक लक्षणों पर ही निर्भर करती है। कई बार इलाज इसलिए भी सही नहीं हो पाता है कि लोग डॉक्टर से पूरी बात नहीं बताते हैं।








यह बात इलाज से पहले ही नहीं, इलाज के दौरान भी इतनी ही महत्वपूर्ण होती है। हालांकि मरीज ऐसा करते नहीं हैं। इलाज शुरू होने के बाद लोगों की धारणा होती है कि डॉक्टर ज्यादा जानकार है। वह सही इलाज ही करेगा। आसपास के लोग भी ऐसी ही सलाह देते हैं। इलाज पर सवाल उठाना सही नहीं माना जाता। हालिया अध्ययन में यह सोच गलत पाई गई है। इसमें कहा गया है कि इलाज पर सवाल उठाना सही है।




अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन की रिपोर्ट के मुताबिक, इलाज के लक्ष्य को हासिल करने के लिए जरूरी है कि मरीज और डॉक्टर के बीच कोई हिचक नहीं हो। इलाज की प्रक्रिया में अगर कोई दिक्कत हो रही हो या इलाज से ज्यादा असर नहीं लग रहा हो, तो डॉक्टर से खुलकर बात करनी चाहिए। ऐसा करने से डॉक्टर इलाज बदलने के बारे में विचार करेगा। हो सकता है कि इलाज बदलने से मरीज को फायदा हो जाए। 2015 में मनोचिकित्सकों जोशुआ के. स्विफ्ट और रोजर ग्रीनबर्ग ने इस संबंध में किताब लिखी थी।

उनका कहना था कि इलाज से जरूरत से ज्यादा उम्मीद करने, इलाज का असर कम होने या डॉक्टर से कुछ कहने की हिचक के कारण कई बार लोग बीच में ही इलाज छोड़ देते हैं। अध्ययनों में पाया गया है कि मानसिक बीमारियों का इलाज करा रहे 20 फीसद लोग बिना बताए समय से पहले इलाज बंद कर देते हैं।

अपनी चिंता से कराएं अवगत : इलाज से किसी तरह का दुष्प्रभाव लगे, तो तुरंत चिकित्सक को बताएं। असर उम्मीद से कम हो, तब भी चर्चा करें।




2016 में हुए एक अध्ययन के मुताबिक, मानसिक बीमारियों का इलाज करा रहे 72.6 फीसद लोग इलाज के असर और अनुभव के बारे में झूठ बोलते हैं। मरीज प्राय: चिकित्सक की हां में हा मिलाते हैं। डॉक्टर के सामने ऐसा पेश करते हैं कि उन्हें इलाज से पर्याप्त फायदा हो रहा है। यह गलत है। जरूरी है कि चिकित्सक की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए कुछ सकारात्मक बातों के साथ मरीज अपना असल अनुभव उनके सामने रखें।

डॉक्टर का भी करें आकलन

एक अच्छा डॉक्टर मरीज की बातों को धैर्य से सुनता है। अगर इलाज के प्रति आपका अनुभव सकारात्मक नहीं हो, तो वह सहजता इलाज में बदलाव की बात भी कहता है। ऐसे डॉक्टर के साथ इलाज की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना सेहत के लिए सही रहता है। ऐसे डॉक्टर जरूरत पड़ने पर आपको किसी अन्य डॉक्टर से बात करने की सलाह भी दे सकते हैं। वहीं अगर डॉक्टर आपकी राय पर भड़क जाए या उन्हें अनदेखा कर दे, तो संभल जाएं। ऐसी परिस्थिति में इलाज कराना फायदा कम, नुकसान ज्यादा पहुंचा सकता है।

अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन ने रिपोर्ट में बताया। प्रतीकात्मक