सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद रेलवे कर्मियों के पुत्रों को नौकरी की जगी उम्मीद

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद रेलवे कर्मियों के पुत्रों को नौकरी की उम्मीद जगी है। रेलवे ने रनिंग कर्मियों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्त लेकर अपने एक संतान को नौकरी देने की व्यवस्था लागू कर रखी थी। हाईकोर्ट ने इस व्यवस्था पर रोक लगा दी थी। रेलवे बोर्ड ने हाईकोर्ट आदेश के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील की। नरमू के मंडल मंत्री राजेश चौबे ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के आदेश खारिज कर दिया और रेल प्रशासन को रेल कर्मियों के पुत्रों को नौकरी देने पर विचार करने का आदेश दिया है। सुप्रीम के आदेश के बाद रेल कर्मियों को पुत्रों को नौकरी मिलने का रास्ता फिर से साफ हो गया है।








इससे पहले रेलवे बोर्ड की कार्यवाही में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति वाले रेलकर्मियों के बच्चों को नौकरी पर रोक लगी थी

फिलहाल स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वाले रेल कर्मचारियों के बच्चों को नौकरी देने की व्यवस्था पर फिलहाल रोक लगा दी गई है। कुछ विभागों में तो काफी संख्या में रेल कर्मचारियों के बच्चे नौकरी पर लग गए हैं। रेलवे बोर्ड ने इस पर अग्रिम आदेश तक रोक लगा दी है। लिब्ररलाइज्ड एक्टिव रिटायरमेंट स्कीम फार गारंटीड एंप्लायमेंट फार सेफ्टी स्टाफ की शुरूआत वर्ष 2004 में की गयी थी।




तब नीतिश कुमार रेल मंत्री थे। रेलवे बोर्ड ने आदेश जारी किया था कि अगर कोई रेल कर्मचारी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति रिटायरमेंट से तीन साल पहले लेते हैं तो उनके बच्चों को नौकरी दी जाएगी। यह स्कीम पीडब्ल्यूआइ सिग्नल विभाग आदि में लागू की गयी थी। कई रेल कर्मचारियों ने तीन साल पहले रिटायरमेंट लेकर अपने बच्चों को नौकरी दे दी थी। इस स्कीम के तहत रेल कर्मचारी के कई बच्चे नौकरी कर रहे हैं। लेकिन रेलवे बोर्ड ने वीआरएस पर अग्रिम आदेश तक रोक लगा दी है।




अब रेल कर्मचारी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेते हैं तो उनके बच्चों को नौकरी नहीं जाएगी। इस पर रोक लग जाने से रेल कर्मचारियों को झटका लगा है। नार्दन रेलवे मेंस यूनियन के सचिव नरेंद्र त्यागी ने बताया कि रेलवे बोर्ड की स्कीम सही थी। इस स्कीम को बंद कर रेल कर्मचारी के साथ गलत किया जा रहा है।