SUPEREM COURT

बेंगलुरु:- कर्नाटक में करीब 10,000 दलित सरकारी कर्मचारियों पर डिमोशन की तलवार लटक रही है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से हाल ही में प्रोन्नति में आरक्षण को खारिज किए जाने के बाद इन कर्मचारियों को दिया गया प्रमोशन वापस लिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश को चुनौती देने के लिए कांग्रेस सरकार तैयारियों में जुटी है ताकि 2018 के विधानसभा चुनाव में होने वाले संभावित नुकसान को टाला जा सके। कांग्रेस की योजना है कि इस मसले पर सभी को लुभाने वाले कोई फॉर्म्युला निकाला जा सके।

प्रदेश सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा, ‘हम बहुत ही जटिल और संवेदनशील स्थिति में हैं। यदि हम दलितों के साथ खड़े होने में असफल रहे तो वे हमें ऐंटी-दलित घोषित कर देंगे। इससे हमारी चुनावी संभावनाओं पर विपरीत असर पड़ने की संभावना है। यदि हम उनके पक्ष में अदालत गए तो पिछड़ी और अगड़ी जातियां हमसे चुनाव में छिटक सकती हैं।’ कानून एवं संसदीय कार्य मंत्री टी.बी. जयचंद्र ने कहा कि सरकार इस बारे में अकाउंटेंट जनरल से राय मांग रही है कि आखिर इस मसले पर क्या करना सही रहेगा। उन्होंने कहा कि उनके इनपुट के आधार पर ही हम कोई योजना बनाएंगे।

9 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने 1978 के बाद से दलित कर्मियों को आरक्षण के आधार पर दिए गए प्रमोशन को खत्म करने का आदेश दिया था। शीर्ष अदालत ने सूबे की सरकार को इस आदेश पर अमल के लिए तीन महीने का वक्त दिया है। इस अवधि के दौरान कर्नाटक सरकार इस आदेश को चुनौती दे सकती हैं। सरकार के लिए सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश गले की फांस बन गया है क्योंकि प्रमोशन में आरक्षण के चलते तमाम दलित कर्मचारी ऊंचे ओहदे पर पहुंच गए हैं, ऐसे में इनका डिमोशन चिंता का सबब होगा। दूसरी तरफ जनरल और ओबीसी श्रेणी से आने वाले कर्मचारियों को बीते कई सालों से बकाया प्रमोशन मिल सकता है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकार ने अभी कोई फैसला नहीं लिया है, लेकिन आरक्षण समर्थक समूह अपनी रणनीति तैयार करने में जुट गए हैं। एक सीनियर दलित कर्मचारी ने कहा, ‘हम सरकार के अगले कदम पर बहुत करीबी से नजर रख रहे हैं। यदि सरकार प्रमोशन में आरक्षण के खिलाफ कोई कदम उठाती है तो हम उसका विरोध करेंगे।’

Source:- NavBharat Times