पुराने यमुना पुल से कोठापार्चा की ओर 200 मीटर दूर पर बुधवार तड़के चार बजे रेलवे के दो कर्मचारी सिग्नल ठीक करते समय तेज रफ्तार राजधानी एक्सप्रेस की चपेट में आ गए। दोनों की मौके पर मौत हो गई। सुबह घटना का पता चलने पर पुलिस को सूचना दी गई। दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया। रेलवे के अधिकारियों ने दुर्घटना की जांच के आदेश दिए हैं। 

जंक्शन पर सिग्नल विभाग में कर्मचारी ईएसएम-1 शैलेंद्र कुमार और सिग्नल असिस्टेंट लालमन की बुधवार को रात्रि शिफ्ट (10-6) ड्यूटी थी। इसी दौरान पता चला सवा दो बजे मैसेज आया कि गऊघाट के पास सिग्नल नंबर 202 में कुछ खराबी है। लालमन और शैलेंद्र वहां तुरंत पहुंचे और सिग्नल केबिन को चेक किया। वहां सब कुछ ठीक था। इसके बाद वे 200 मीटर दूर कोठापार्चा की ओर सिग्नल खंभे के पास पहुंचे। वहां से उन्होंने कंट्रोल रूम से बात की। तब तक सब ठीक था।

इसी के बाद तेज रफ्तार राजधानी उधर से गुजरी और दोनों ट्रेन की चपेट में आ गए। उनकी मौके पर ही मौत हो गई। किसी को कुछ पता नहीं चला। उधर कंट्रोल रूम से बार बार उनसे संपर्क की कोशिश की गई, लेकिन रिस्पांस न मिलने पर जेई श्याम बिहारी मौके पर पहुंचे। तब पता चला कि दोनों की मौत हो चुकी है। उनकी सूचना पर आरपीएफ और मुट्ठीगंज पुलिस मौके पर पहुंची।  कुछ देर में रेलवे के तमाम अधिकारी भी पहुंच गए। दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए दोपहर में भेजा गया।

शाम को ही उनका अंतिम संस्कार करा दिया गया। घटना को लेकर जंक्शन पर दिन भर अफरातफरी का माहौल रहा। जब दो कर्मचारियों को सिग्नल ठीक करने के लिए भेजा गया था तो किसकी गलती से राजधानी को हरी झंडी दी गई। इसे लेकर ही विवाद होता रहा। तमाम संगठनों ने इस घटना में अधिकारियों पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए जांच और कार्रवाई की मांग की है। रेलवे ने इस घटना की जांच के आदेश दे दिए हैं। 

लालमन की पत्नी का रो रोकर बुरा हाल, बच्चे भी बिलखे 
मूल रूप से आजमगढ़ के कोइलरी खुर्द गांव के रहने वाले लालमन जंक्शन पर सिग्नल विभाग में तैनात थे। वह साउथ मलाका के आजाद नगर में पत्नी रीता और दो बच्चों के साथ किराये पर रहते थे। बुधवार को दिन में जब उनकी पत्नी को पता चला तो वह बिलखने लगीं। दोनों बच्चे भी पिता को याद कर बिलख रहे थे। तुरंत गांव में सूचना भेजी गई। देर शाम तक तमाम रिश्तेदार पहुंच गए थे। रिश्तेदार शव लेकर आजमगढ़ चले गए। हादसे में जान गंवाने वाले दूसरे कर्मचारी शैलेंद्र कुमार कैंट के रहने वाले थे। वह जंक्शन के पास रेलवे कालोनी में रहते थे। शैलेंद्र के पिता रेलवे में लोको पायलट थे। पिता की मौत के बाद नौकरी मिली थी। मां की भी मौत हो चुकी है। शैलेंद्र की मौत के बाद उनकी तीन बहनों और एक भाई का रो रोकर बुरा हाल हो गया था।