सीतापुर और हरदोई से आने वाली ट्रेनों में दूध के केन अब नजर नहीं आते हैं। हरौनी से मेमू ट्रेनों से आने वाले दैनिक यात्री भी अब दिखायी नहीं पड़ रहे। राजकीय जुबली कॉलेज में सिधौली व अन्य स्टेशनों से आने वाले छात्र भी अब बसों में महंगा सफर कर रहे हैं। आसपास के जिलों से रोजाना लखनऊ आने वाले करीब 20 हजार दैनिक यात्रियों की जेब पर रेलवे की उदासीनता भारी पड़ रही है।

दरअसल, रेलवे ने मुंबई में मेट्रो के साथ बिहार में पैसेंजर ट्रेनों की शुरुआत कर दी है। लखनऊ रेल मंडल में अब तक मेमू और पैसेंजर ट्रेनों की शुरुआत नहीं हुई है। यात्रियों को कम किराए वाली पैसेंजर ट्रेनों की जगह बसों का महंगा सफर करना पड़ रहा है। रेलवे जिन क्लोन स्पेशल ट्रेनों को दौड़ा रहा है। उसकी जनरल बोगी का भी सेकेंड सीटिंग क्लास में रिजर्वेशन करवाना पड़ रहा है। इन ट्रेनों में पहले से लंबी वेटिंग चलती है। ऐसे में सेकेंड सीटिंग क्लास का टिकट लेने पर भी यात्रियों को कंफर्म टिकट नहीं मिल पाता है। फैजाबाद लखनऊ रेलखंड दैनिक यात्री संघ के अध्यक्ष राजीव सिन्हा बताते हैं कि पुरानी एमएसटी की वैद्यता समाप्त हो गई है। 

रेलवे ने उसका विस्तार ही नहीं किया। दैनिक यात्रियों को ट्रेनों से तीन गुना अधिक किराया बसों में देकर सफर करना पड़ रहा है। उन्नाव का मेमू का किराया 15 है तो बस का किराया 76 रुपये देना पड़ रहा है। इसी तरह कानपुर के लिए मेमू का 20 और बस का किराया 114 रुपये पड़ता है। जबकि बछरावां का पैसेंजर का किराया  15 और बस का 68, बाराबंकी का  मेमू का 10 और सड़क मार्ग से 36 रुपये है। इसी तरह रायबरेली का पैसेंजर ट्रेन का किराया 20 और बस का 100 तक पड़ता है।