कांदिवली क्राइम ब्रांच ने रेलवे टेंडर घोटाले में वेस्टर्न रेलवे के सीनियर सेक्शन इंजिनियर अनिल कुमार अहिरवार को गिरफ्तार किया है। डीसीपी अकबर पठान ने बताया कि यह घोटाला करीब पौने तीन करोड़ रुपये का है। आरोपी को किला कोर्ट ने 6 नवंबर तक क्राइम ब्रांच कस्टडी में भेज दिया है। यह इस केस में चौथी गिरफ्तारी है। तीन दिन पहले किरण चौहान, सुभाष सोलंकी और मयूर सोलंकी नामक आरोपी भी गिरफ्तार हुए थे।

सीनियर इंस्पेक्टर सुनील माने ने बताया कि अनिल कुमार इस रैकेट का सरगना है। वह वेस्टर्न रेलवे के महालक्ष्मी डिपो में कार्यरत था। माने के अनुसार, अनिल कुमार को वेस्टर्न रेलवे ने तमाम तरह के रेलवे के टेंडर का जिम्मा सौंपा था। जिस केस में अनिल कुमार की गिरफ्तारी हुई, वह रेलवे के हार्स पाइप टेंडर से जुड़ा मामला है। इसमें दो डिब्बों को जोड़ने का काम होता है। शिकायतकर्ता पहले बीएमसी और सूरत नगरपालिका के अलग-अलग कामों के टेंडर लेता रहता है। इस बार उससे किसी के जरिए हार्स पाइप टेंडर के लिए अप्लीकेशन देने को कहा गया। फिर कुछ दिनों बाद उसे बताया गया कि उसके पक्ष में टेंडर पास हो गया है। उसे माल नागपुर और भुसावल में भेजना है। तीन दिन पहले जो लोग गिरफ्तार किए गए थे, उनमें से किसी को हार्स पाइप का सप्लायर बना दिया गया और शिकायतकर्ता से कहा गया कि इसकी कंपनी से ही तुम्हें माल खरीदना होगा। उस सप्लायर ने शिकायतकर्ता को नागपुर और भुसावल बुलाया।

दूर से शिकायतकर्ता को ट्रक दिखाए, जिनमें खाली डिब्बे रखे हुए थे। शिकायतकर्ता को कहा गया कि उसका ऑर्डर किया गया माल सीधे रेलवे को पहुंचा दिया गया है। उसे फर्जी रसीद दी गईं, जिन पर सिग्नेचर से स्टैम्प तक-सब कुछ फर्जी था। इन फर्जी रसीदों के बदले में शिकायतकर्ता से 2 करोड़ 73 लाख रुपये से ज्यादा ले लिए गए। सुनील माने कहते हैं कि गिरफ्तार आरोपियों में सबसे ज्यादा रकम-एक करोड़ रुपये से भी ज्यादा अनिल कुमार अहिरवार को मिली। उसने कुछ रकम कैश ली, बाकी पेमेंट चेक से पत्नी व अन्य रिश्तेदारों के नाम लिया।

सभी आरोपियों से पूछताछ में दो और मामले भी सामने आए हैं, जिसकी भी क्राइम ब्रांच ने छानबीन शुरू कर दी है। एक मामला दो-तीन साल पहले इसी तरह के फर्जी टेंडर का पता चला है, जबकि दूसरे मामले में गुजरात में रेलवे में भर्ती के नाम पर कई लोगों से 5 से 10 लाख रुपये प्रति कैंडिडेट लेने की बात पता चली है। क्राइम ब्रांच छानबीन कर रही है कि क्या यह भर्तियां हुईं भी थीं या नहीं?