जमालपुर को रेल नगरी भी कहा जाता है। जमालपुर में एशिया का पहला रेल इंजन कारखाना मौजूद है। शहर का 70 प्रतिशत भूभाग रेल क्षेत्र के अधीन आता है। रेल और रेल इंजन कारखाना जमालपुर शहर ही नहीं आसपास के पूरे इलाके की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है। इस कारण प्रत्येक चुनाव में जाने-अनजाने रेल कारखाना मुद्दा बनता रहा है।

रेल कारखाना की बदहाली, रेलवे के निजीकरण, रेल में बहाली प्रक्रिया आदि मुद्दे को लेकर इस बार लोग कुछ ज्यादा ही मुखर हैं। जमालपुर के लोगों के लिए रेल कारखाना का महत्व क्या है, यह कारखाना के समीप ही सत्तू का दुकान चलाने वाले राजेश की बात से आसानी से समझ में आ जाती है। राजेश ने कहा कि मैं बीते 30 वर्ष से सत्तू बेचने का काम कर रहा हूं। पहले कारखाना की डयूटी शुरू होने से पहले हजारों रेलकर्मी यहां रूक कर सत्तू, चाय आदि पीते थे। रेलकर्मी की संख्या कम होती जा रही है, उसी अनुपात में हमारी आमदनी भी। कारखाना के समीप एसएसटी रेलवे कर्मचारी एसोसिएशन के प्रमोद कुमार दास मिले। प्रमोद ने कहा कि जमालपुर में पहले से ही कारखाना मौजूद है। इसके बाद भी बिहार में कई जगहों पर रेल चक्का कारखाना खोला गया। अगर वही कार्यभार जमालपुर रेल कारखाना को दिया जाता, तो बिना अतिरिक्त निवेश किए दूसरे दिन से ही उत्पादन शुरू हो सकता था।

मेंस यूनियन के शाखा सचिव मनोज कुमार, अध्यक्ष विश्वजीत कुमार, ओमप्रकाश गुप्ता आदि ने कहा कि बहुत अतीत में नहीं भी जाएं, तो वर्ष 1990 तक जमालपुर रेल इंजन कारखाना में 15 हजार रेलकर्मी कार्यरत थे। 2020 में यह संख्या घट कर सात हजार रह गई है। वर्कलोड नहीं बढ़ाया गया और नई नियुक्ति नहीं शुरू हुई, तो धीरे धीरे सब खत्म हो जाएगा। 30 नवंबर 1991 को अंतिम वाष्प इंजन संध्या को विदाई दी गई। इसके बाद जमालपुर रेल कारखाना को डीजल इंजन के निर्माण, मरम्मत, रेलवे बॉगी के निर्माण और मरम्मत का कार्यभार मिला।

जमालपुर रेल कारखाना में जमालपुर जैक और 140 ट्रेन का निर्माण कार्य भी प्रारंभ हुआ। अब रेलवे 175 टन क्रेन की आवश्यकता महसूस कर रही है। जमालपुर के रेलकर्मियों के पास कौशल भी और अनुभव भी। इलेक्ट्रिक मेामो, टावर कार, 175 टन क्रेन आदि का कार्यभार देकर रेलकारखाना को संकट से उबारा जा सकता है। रेल कारखाना बचेगा, तो जमालपुर और आसपास के बाजार को ताकत मिलती रहेगी। ऑटो स्टैंड पर खड़े छात्र संजीव कुमार ने कहा कि जमालपुर से सीधी सड़क पटना जाती है। लेकिन, रास्ते में गड्ढें और खतरनाक मोड़ भी हैं। विकास का सही रोड मैप देने वाले ही पटना तक पहुंच पाएंगे, वरना रास्ते ही गाड़ी अटक जाएगी…।